पांचवां अध्याय :
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सूत जी बोले— हे शौनक! उस प्राचीन काल की गहन रात्रि में, जब आकाश में तारे रहस्यमयी ढंग से चमक रहे थे, चंचुला आनंद की गहन लहरों में डूबी हुई उमा देवी के समीप पहुंची। उसकी आंखों में एक अनजानी उत्सुकता थी, मानो कोई गुप्त रहस्य उसके हृदय को छू रहा हो। उसने दोनों हाथ जोड़कर, धीमी स्वर में, देवी की स्तुति आरंभ की, जैसे कोई प्राचीन मंत्र की ध्वनि हवा में घुल रही हो।
चंचुला बोली— हे गिरिराजनंदिनी! स्कंदमाता, उमा, आप सभी मनुष्यों एवं देवताओं द्वारा पूज्य हैं, समस्त सुखों की दात्री हैं। आप शंभुप्रिया हैं, सगुणा और निर्गुणा का रहस्यमय रूप धारण करने वाली। हे सच्चिदानंदस्वरूपिणी! आप ही प्रकृति की गहन पोषक हैं, जिसके रहस्यों में सृष्टि छिपी है। हे माता! आप ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार की अदृश्य शक्ति हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्तम प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली परम रहस्यमयी शक्ति। आपकी कृपा से ही यह जगत का रहस्य खुलता है, और आपकी दृष्टि से ही अंधकार में प्रकाश की किरण फूटती है।
सूत जी कहते हैं— शौनक! सद्गति प्राप्त चंचुला इस प्रकार देवी की स्तुति कर शांत हो गई, मानो उसके हृदय में कोई गुप्त आंसू की बूंदें उमड़ रही हों। उसकी आंखों में प्रेम के आंसू छलक आए, जैसे कोई प्राचीन दर्द की छाया उसके चेहरे पर मंडरा रही हो। तब शंकरप्रिया, भक्तवत्सला उमा देवी ने बड़े प्रेम से, अपनी मधुर वाणी में, चंचुला को चुप कराते हुए कहा— सखी चंचुला! तुम्हारी स्तुति से मेरा हृदय प्रसन्न हो उठा है, जैसे कोई छिपा हुआ रहस्य अब प्रकट होने को है। बोलो, क्या वर मांगती हो? तुम्हारा दर्द मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है, और मैं तुम्हें उससे मुक्त करने की रहस्यमयी शक्ति रखती हूं।
चंचुला बोली— हे गिरिराज कुमारी! मेरे पति बिंदुग इस समय कहां हैं? उनकी गति कैसी हुई है? मुझे बताइए, और कुछ ऐसा रहस्यमय उपाय कीजिए, ताकि हम फिर से मिल सकें, जैसे कोई प्राचीन बंधन टूटकर जुड़ जाए। हे महादेवी! मेरे पति एक शूद्र जाति की वेश्या के प्रति आसक्त थे, पाप की गहन अंधेरी गलियों में डूबे रहते थे, जहां हर कदम पर छाया का खेल चलता था।
गिरिजा बोलीं— बेटी! तुम्हारा पति बिंदुग बड़ा पापी था, उसके कर्मों की छाया इतनी गहन थी कि उसका अंत भयानक और रहस्यमय हो गया। वेश्या का उपभोग करने के कारण वह मूर्ख नरक में अनेक वर्षों तक अनेक प्रकार के दुख भोगकर, अब शेष पाप को भोगने के लिए विंध्यपर्वत पर पिशाच की योनि में रह रहा है। वह दुष्ट वहीं वायु पीकर जीवित है, सब प्रकार के कष्ट सहता हुआ, जैसे कोई प्राचीन अभिशाप उसे घेरे हुए हो। उसकी हर सांस में पछतावा की कराह छिपी है, और रातें उसके लिए अनंत रहस्यों से भरी हैं।
सूत जी कहते हैं— शौनक! गौरी देवी की यह बात सुनकर चंचुला अत्यंत दुखी हो गई, उसके हृदय में दर्द की एक गहन लहर उठी, मानो कोई अदृश्य पीड़ा उसे घेर रही हो। फिर मन को किसी तरह स्थिर करती हुई, दुखी हृदय से, वह मां गौरी से एक बार फिर पूछने लगी, उसकी आवाज में मोहब्बत और पछतावा की मिश्रित ध्वनि थी। हे महादेवी! मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे पापी पति का अब उद्धार कर दीजिए। कृपा करके मुझे वह रहस्यमय उपाय बताइए, जिससे मेरे पति को उत्तम गति प्राप्त हो सके, और यह दर्द की छाया हमेशा के लिए मिट जाए।
गौरी देवी ने कहा— यदि तुम्हारा पति बिंदुग शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने, तो वह इस दुर्गति को पार करके उत्तम गति का भागी हो सकता है। यह कथा इतनी रहस्यमयी है कि इसके शब्द पापों की जंजीरों को तोड़ देते हैं, और हृदय में एक नई रोशनी जगाते हैं।
अमृत के समान मधुर गौरी देवी का यह वचन सुनकर चंचुला ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाया, और बारंबार प्रणाम करते हुए प्रार्थना की, उसकी आवाज में गहन मोहब्बत और आशा की चमक थी— हे देवी! मेरे पति को शिव पुराण सुनाने की रहस्यमयी व्यवस्था कीजिए, ताकि हमारा मिलन फिर से हो सके।
ब्राह्मण पत्नी चंचुला के बार-बार प्रार्थना करने पर, शिवप्रिया गौरी देवी ने भगवान शिव की महिमा का गान करने वाले गंधर्वराज तुम्बुरो को बुलाया। उनकी आंखों में एक गहन रहस्य था, और उन्होंने कहा— तुम्बुरो! तुम्हारी भगवान शिव में प्रीति है, तुम मेरे मन की सभी बातें जानकर मेरे कार्यों को सिद्ध करते हो। तुम मेरी इस सखी के साथ विंध्य पर जाओ। वहां एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है, जिसकी आकृति इतनी विकराल है कि रातें उसके भय से कांपती हैं। पूर्व जन्म में वह पिशाच बिंदुग नामक ब्राह्मण मेरी इस सखी चंचुला का पति था। वह वेश्यागामी हो गया, स्नान-संध्या आदि नित्यकर्म छोड़ दिए। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, दुर्जनों से मित्रता और सज्जनों से द्वेष बढ़ गया। वह अस्त्र-शस्त्र से हिंसा करता, लोगों को सताता, उनके घरों में आग लगा देता। चाण्डालों से दोस्ती करता, रोज वेश्या के पास जाता। पत्नी को त्यागकर दुष्ट लोगों से दोस्ती कर उन्हीं के संपर्क में रहता। वह मृत्यु तक दुराचार में फंसा रहा, उसके कर्मों की छाया इतनी गहन थी कि मृत्यु के बाद उसे पापियों के भोग स्थान यमपुर ले जाया गया। वहां घोर नरकों को सहकर, इस समय वह विंध्य पर्वत पर पिशाच बनकर रह रहा है, पापों का फल भोग रहा है, जहां हर रात एक नया रहस्य उसके दर्द को बढ़ाती है। तुम उसके सामने परम पुण्यमयी, पापों का नाश करने वाली शिव पुराण की दिव्य कथा का प्रवचन करो। इस कथा को सुनने से उसका हृदय सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाएगा, और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाएगा। दुर्गति से मुक्त होने पर उस बिंदुग नामक पिशाच को विमान पर बिठाकर तुम भगवान शिव के पास ले आना।
सूत जी कहते हैं— शौनक! मां उमा का आदेश पाकर गंधर्वराज तुम्बुरो प्रसन्नतापूर्वक अपने भाग्य की सराहना करते हुए, चंचुला को साथ लेकर विमान से पिशाच के निवास स्थान विंध्यपर्वत गया। वहां पहुंचकर उसने उस विकराल आकृति वाले पिशाच को देखा, जिसका शरीर विशाल था, ठोढ़ी बड़ी थी, वह कभी हंसता, कभी रोता और कभी उछलता था, मानो उसके भीतर कोई प्राचीन अभिशाप की आग जल रही हो। महाबली तुम्बुरो ने बिंदुग नामक पिशाच को पार्श्व से बांध लिया, जैसे कोई गुप्त शक्ति उसे नियंत्रित कर रही हो। उसके पश्चात तुम्बुरो ने शिव पुराण की कथा बांचने के लिए स्थान तलाश कर, एक रहस्यमय मंडप की रचना की, जहां हवा में अमृत की सुगंध घुलने लगी।
शीघ्र ही इस बात का पता लोगों को चल गया कि एक पिशाच के उद्धार हेतु देवी पार्वती की आज्ञा से तुम्बुरो शिव पुराण की अमृत कथा सुनाने विंध्यपर्वत पर आया है। उस कथा को सुनने के लोभ से बहुत से देवर्षि वहां पहुंच गए, उनकी आंखों में रहस्य की चमक थी। सभी को आदरपूर्वक स्थान दिया गया। पिशाच बिंदुग को पाशों में बांधकर आसन पर बिठाया गया, और तब तुम्बुरो ने परम उत्तम शिव पुराण की अमृत कथा का गान शुरू किया। उसने पहली विद्येश्वर संहिता से लेकर सातवीं वायुसंहिता तक शिव पुराण की कथा का स्पष्ट वर्णन किया, हर शब्द में पछतावा, मोहब्बत और इंसाफ की गहन भावनाएं छिपी थीं, जैसे कथा खुद जीवित होकर श्रोताओं के हृदय को छू रही हो।
सातों संहिताओं सहित शिव पुराण को सुनकर सभी श्रोता कृतार्थ हो गए, उनके चेहरों पर एक रहस्यमय शांति छा गई। परम पुण्यमय शिव पुराण को सुनकर पिशाच सभी पापों से मुक्त हो गया, और उसने पिशाच शरीर का त्याग कर दिया, जैसे कोई प्राचीन जादू उसे मुक्त कर रहा हो। शीघ्र ही उसका रूप दिव्य हो गया, शरीर गौर वर्ण का हो गया, शरीर पर श्वेत वस्त्र एवं पुरुषों के आभूषण आ गए।
इस प्रकार दिव्य देहधारी होकर बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला के साथ स्वयं भी भगवान शिव का गुणगान करने लगा, उसके हृदय में घमंड का स्थान अब पछतावा और मोहब्बत ने ले लिया था। उसे इस दिव्य रूप में देखकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, मानो कोई गुप्त रहस्य अब खुल चुका हो। उसका मन परम आनंद से परिपूर्ण हो गया, और दर्द की सारी छायाएं मिट गईं।
सभी भगवान महेश्वर के अद्भुत चरित्र को सुनकर कृतार्थ हो, उनका यशोगान करते हुए अपने-अपने धाम को चले गए। बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला के साथ विमान में बैठकर शिवपुरी की ओर चल दिया, जहां हर कदम पर इंसाफ की विजय का एहसास होता था।
महेश्वर के गुणों का गान करता हुआ बिंदुग अपनी पत्नी चंचुला व तुम्बुरो के साथ शीघ्र ही शिवधाम पहुंच गया। भगवान शिव व देवी पार्वती ने उसे अपना पार्षद बना लिया। दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक भगवान महेश्वर एवं देवी गौरी के श्रीचरणों में अविचल निवास पाकर धन्य हो गए। और इस प्रकार, पाप की गहन छाया से मुक्ति का यह रहस्यमय सफर समाप्त हुआ, लेकिन उसके प्रभाव ने अनंत काल तक हृदयों में गूंजते रहने का वादा किया— एक ऐसा अंत जहां मोहब्बत की जीत और पछतावा की सीख हमेशा के लिए जीवित रहती है, श्रोताओं के मन में देर तक उसकी गहन छाप छोड़कर।



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