बिंदुग ब्राह्मण की रहस्यमयी कथा

Shiv Puran Katha
0

तीसरा अध्याय :







श्री सूत जी बोलेहे शौनक! तुम शिव भक्तों में अग्रगण्य और वेदों के गहन रहस्यों के ज्ञाता हो, अतः मैं तुम्हारे समक्ष एक गूढ़, रहस्यमयी और हृदय को झकझोर देने वाली कथा का वर्णन करूंगा, जो पाप और पुण्य के बीच की उस अनदेखी रेखा को उजागर करती है, जहां आत्मा का उद्धार संभव है। यह कथा केवल धर्म और अधर्म के द्वंद्व को प्रकट करती है, बल्कि उस अनंत कृपा को भी दर्शाती है, जो भगवान शिव के चरणों में निवास करती है। सुनो, और अपने हृदय को इस कथा के गहन भावों में डुबो दो।


समुद्र के तटवर्ती एकांत क्षेत्र में वाष्कल नामक एक गांव बसा था। यह गांव ऐसा था, मानो वह धर्म और सत्य से कोसों दूर हो। वहां के निवासी वैदिक धर्म के मार्ग से सर्वथा विमुख थे। उनके हृदय पाप के गहरे अंधकार में डूबे थे, और उनकी आत्माएं विषय भोगों की दलदल में फंसी थीं। ये लोग केवल दुष्ट स्वभाव के थे, बल्कि उनका मन भी दूषित विचारों से भरा था। वे देवताओं और भाग्य में विश्वास नहीं करते थे। उनकी कुटिल वृत्ति और क्रूर कर्म उनके जीवन का आधार थे। वे खेती करते, पर उनके पास तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र भी थे, जो उनकी हिंसक प्रवृत्ति का प्रतीक थे। व्यभिचार उनके जीवन का हिस्सा था। उन्हें इस बात का तनिक भी ज्ञान नहीं था कि ज्ञान, वैराग्य और सद्धर्म ही मनुष्य जीवन के परम पुरुषार्थ हैं। उनकी बुद्धि पशुओं के समान थी, जो केवल इंद्रियों के सुख में ही लीन रहती थी।


वाष्कल के अन्य समुदाय भी उनसे भिन्न नहीं थे। वे भी धर्म से दूर, दुष्ट विचारों में डूबे हुए थे। उनके कर्म पापमय थे, और वे सदा विषय भोगों की तृष्णा में मग्न रहते थे। वहां की स्त्रियां भी दुराचारी थींवे स्वच्छंद, पाप में लिप्त, कुटिल सोच वाली और व्यभिचारिणी थीं। उनमें सद्व्यवहार और सदाचार का लेशमात्र भी नहीं था। यह गांव मानो दुष्टों का एक ऐसा अड्डा था, जहां पुण्य और धर्म का कोई स्थान नहीं था।


इसी वाष्कल गांव में बिंदुग नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण होते हुए भी अधर्म का पुतला था। उसकी आत्मा दुराचार और पाप के दलदल में डूबी थी। वह महापातकी था, जिसका जीवन केवल दुष्कर्मों की एक काली गाथा था। उसकी पत्नी, चंचुला, अत्यंत सुंदर थी। उसका रूप ऐसा था, मानो साक्षात अप्सरा धरती पर उतर आई हो। वह अपने धर्म का पालन करने वाली थी, और उसका हृदय प्रारंभ में सत्य और पवित्रता से भरा था। किंतु बिंदुग का चरित्र वेश्यागमन में रत था। वह नित्य दुराचार में डूबा रहता था, और उसका मन कभी धर्म की ओर नहीं मुड़ा।


इस प्रकार बिंदुग और चंचुला का जीवन पाप और अधर्म के गहरे सागर में डूबता चला गया। चंचुला, जो प्रारंभ में अपने धर्म का पालन करती थी, अपने पति के दुराचार से प्रभावित होकर धीरे-धीरे स्वयं भी दुराचारिणी बन गई। काम की पीड़ा और पति के कुकर्मों ने उसके धर्म को डगमगा दिया। वह अपने स्वधर्म से विमुख हो गई, और उसका जीवन भी पाप के रास्ते पर चल पड़ा। इस प्रकार यह दंपती पाप और दुराचार के गहरे गर्त में डूबता चला गया, और उनका जीवनकाल व्यर्थ ही बीतता रहा।


कालांतर में, जैसा कि नियति का नियम है, बिंदुग की मृत्यु हो गई। उसकी दूषित बुद्धि और दुष्कर्मों ने उसे नरक के भयानक यातनाओं में धकेल दिया। वह नरक में गया, जहां उसे अपने कर्मों का भयंकर फल भोगना पड़ा। वहां की यातनाएं इतनी भयावह थीं कि उसकी आत्मा तड़प उठी। नरक के दुखों को भोगने के पश्चात वह विंध्य पर्वत पर एक भयंकर पिशाच के रूप में भटकने लगा। उसका यह रूप इतना विकराल था कि उसे देखकर ही प्राणी भय से कांप उठते थे।


इधर, बिंदुग की मृत्यु के बाद चंचुला अपने पुत्रों के साथ घर में रहने लगी। पति के चले जाने के बाद भी वह कुछ समय तक अपने धर्म को थामे रही, किंतु धीरे-धीरे वह भी धर्म से पतित हो गई। वह पर पुरुषों के संग में रमने लगी, और उसका जीवन भी अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा। सती स्त्रियां विपत्ति में भी अपने धर्म का पालन नहीं छोड़तीं। तप का मार्ग कठिन होता है, किंतु उसका फल मधुर होता है। किंतु विषयासक्त मनुष्य इस सत्य को नहीं समझता। वह विषयों के विषाक्त फल का स्वाद लेते हुए भोगों में डूब जाता है।



एक दिन, दैववश, एक पुण्य पर्व के अवसर पर चंचुला अपने भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गई। वहां उसने तीर्थ के पवित्र जल में स्नान किया, और अपने बंधुओं के साथ तीर्थ के विभिन्न स्थानों में विचरण करने लगी। उसका मन अभी भी अशांत था, किंतु उस पवित्र स्थान की शक्ति ने उसके हृदय में एक अनजानी हलचल पैदा कर दी। विचरण करते हुए वह एक प्राचीन देव मंदिर में पहुंची। वह मंदिर ऐसा था, मानो वहां स्वयं शिव का वास हो। वहां एक ब्राह्मण भगवान शिव की परम पवित्र और मंगलकारी कथा सुना रहे थे। उनकी वाणी में एक ऐसी शक्ति थी, जो सुनने वालों के हृदय को झकझोर देती थी।


कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे, "जो स्त्रियां व्यभिचार करती हैं, वे मृत्यु के पश्चात यमलोक में पहुंचती हैं। वहां यमराज के दूत उन्हें भयंकर यातनाएं देते हैं। उनके कामांगों को तप्त लोह के दंडों से दागा जाता है। तप्त लोह के पुरुष से उनका संसर्ग कराया जाता है। ये यातनाएं इतनी भयावह होती हैं कि जीव चीख-चीखकर कराह उठता है और प्रण करता है कि वह फिर कभी ऐसा नहीं करेगा। किंतु यमदूत उसे नहीं छोड़ते। कर्म का फल तो सभी को भोगना पड़ता हैचाहे वह देव हो, ऋषि हो, या मनुष्य। कोई भी इस नियम से मुक्त नहीं है।"


इस वैराग्यपूर्ण कथा को सुनकर चंचुला का हृदय भय और पश्चाताप से कांप उठा। उसका मन अपने पापों की स्मृति से व्याकुल हो गया। कथा समाप्त होने पर जब सभी लोग वहां से चले गए, तो चंचुला ने कथावाचक ब्राह्मण के समक्ष जाकर करुण स्वर में कहा, "हे ब्राह्मण! मैंने धर्म के अज्ञान में भयंकर दुराचार किया है। मेरे पापों ने मुझे अंधकार के गहरे गर्त में धकेल दिया है। आपके प्रवचन ने मेरे हृदय में वैराग्य की ज्योति प्रज्वलित कर दी है। मैं मूढ़ और पापिनी हूं। मुझे धिक्कार है! मैं उन विषयों में फंस गई, जो मुझे धर्म से दूर ले गए। अब कौन मेरी जैसी पापिनी का साथ देगा? जब यमदूत मेरे गले में पाश डालकर मुझे नरक की ओर ले जाएंगे, जब मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे, तब मैं उन भयंकर यातनाओं को कैसे सहन कर पाऊंगी? मैं सर्वथा नष्ट हो चुकी हूं। मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण पाप में डूबा रहा है। हे गुरुदेव! आप मेरे माता-पिता हैं, आप मेरे उद्धारक हैं। मैं इस अबला की शरण में आई हूं। कृपया मेरा उद्धार करें!"


सूत जी कहते हैंइस प्रकार करुण विलाप करती हुई चंचुला ब्राह्मण के चरणों में गिर पड़ी। उसकी आंखों से अश्रुओं की धारा बह रही थी, और उसका हृदय पश्चाताप के अग्निकुंड में जल रहा था। ब्राह्मण ने कृपापूर्वक उसे उठाया। उस क्षण में एक गहन रहस्य प्रकट होने वाला था। वह रहस्य ऐसा था, जो पाप के अंधकार को चीरकर मुक्ति का मार्ग दिखाता था। चंचुला की आत्मा में एक नई ज्योति जली, जो उसे उसकी भूलों से मुक्त करने वाली थी। यह कथा केवल उसके पाप और पश्चाताप की नहीं थी, बल्कि उस अनंत कृपा की थी, जो शिव के चरणों में निवास करती है। यह कथा सुनने वालों के हृदय में एक गहरी छाप छोड़ती है, जो यह स्मरण कराती है कि कोई भी पापी, चाहे वह कितना ही अधम क्यों हो, शिव की कृपा से मोक्ष का अधिकारी बन सकता है। किंतु वह मार्ग रहस्यमय और कठिन है, और उस पर चलने के लिए हृदय में सच्चा पश्चाताप और दृढ़ संकल्प होना चाहिए।


यह कथा केवल पाप और पुण्य के द्वंद्व को दर्शाती है, बल्कि उस अनंत कृपा को भी उजागर करती है, जो भगवान शिव के चरणों में निवास करती है। इसका अंत इतना गहरा और प्रभावशाली है कि सुनने वाला देर तक इसके भावों में डूबा रहता है, और उसके हृदय में पश्चाताप, वैराग्य और मुक्ति की चाह जागृत होती है।


Click Here to Discover the Story in English – Read Now!

Post a Comment

0 Comments

Hi Please, Do not Spam in Comments.

Post a Comment (0)
Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!