शिव पुराण के श्रवण की विधि

Shiv Puran Katha
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शिव पुराण कथा का रहस्यमयी मंडप दृश्य


छठा अध्याय: 



शौनक जी, उस प्राचीन वन की गहन छाया में बैठे, अपनी आँखों में एक गहरी जिज्ञासा लिए, सूत जी से बोले—हे महाप्राज्ञ सूत जी! आप धन्य हैं, शिवभक्तों में सर्वश्रेष्ठ, जिनकी वाणी में स्वयं महादेव की प्रतिध्वनि गूँजती है। हम पर अपनी कृपा बरसाइए, और उस कल्याणमय शिव पुराण के श्रवण की गुप्त विधि बताइए, जो सभी श्रोताओं को संपूर्ण उत्तम फल प्रदान करे। वह विधि, जो न केवल कान सुना सके, बल्कि आत्मा को रहस्यमयी तरीके से शिव की लीला में डुबो दे, जहाँ हर शब्द एक रहस्य का द्वार खोले।


सूत जी, जिनकी आँखों में शिव की अनंत गहराई झलकती थी, एक गहरी साँस लेकर बोले—हे मुने शौनक! तुम्हारी इस भक्ति की आग में मैं तुम्हें शिव पुराण की वह विधि सविस्तार बताता हूँ, जो संपूर्ण फल की प्राप्ति का रहस्यमयी मार्ग है। यह विधि कोई साधारण नियम नहीं, बल्कि एक गुप्त यात्रा है, जहाँ हर कदम पर शिव का रहस्य छिपा है, और जो इसे अपनाता है, वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर अनंत आनंद में विलीन हो जाता है।


सर्वप्रथम, किसी ज्योतिषी को बुलाकर, जो तारों की गुप्त भाषा जानता हो, उसे दान से संतुष्ट कर कथा का शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहिए। वह मुहूर्त, जो आकाश के रहस्यों से निकला हो, और उसकी सूचना का संदेश सभी लोगों तक पहुँचाना चाहिए—कि हमारे यहाँ शिव पुराण की कथा होने वाली है, एक ऐसी कथा जो आत्मा की गहराइयों को छू लेगी। अपने कल्याण की इच्छा रखने वालों को, जो रातों की नींद में शिव के स्वप्न देखते हैं, इसे सुनने अवश्य पधारना चाहिए। देश-देश में, दूर-दराज के कोनों में, जो भी भगवान शिव के भक्त हों—वे जो रात की सन्नाटे में शिव का नाम जपते हैं, और शिव कथा के कीर्तन तथा श्रवण के लिए उत्सुक रहते हैं—उन सभी को आदरपूर्वक बुलाना चाहिए। उनका आदर-सत्कार करना चाहिए, जैसे कोई गुप्त अतिथि को स्वागत करता हो, क्योंकि उनकी उपस्थिति कथा को और अधिक रहस्यमयी बना देगी।


शिव पुराण सुनने के लिए, मंदिर की पवित्र भूमि, तीर्थ की रहस्यमयी सरिता किनारे, वनप्रांत की घनी छाया, अथवा घर की गुप्त कोठरी में ही उत्तम स्थान का निर्माण करना चाहिए। केले के खंभों से सुशोभित कथामंडप तैयार कराएं, जो रात के अंधेरे में चाँदनी की तरह चमके। उसे सब ओर फल-पुष्पों से अलंकृत करें, सुंदर चंदोवे से ढकें, जो हवा में लहराते हुए रहस्य की फुसफुसाहट पैदा करें। चारों कोनों पर ध्वज लगाकर उसे विभिन्न सामग्री से सुशोभित करें, ताकि वह मंडप न केवल दृश्य हो, बल्कि एक जीवंत रहस्य का केंद्र बन जाए। भगवान शंकर के लिए भक्तिपूर्वक दिव्य आसन का निर्माण करना चाहिए, ऐसा आसन जो उनकी अनंत शक्ति को आमंत्रित करे, और कथा वाचक के लिए भी दिव्य आसन, जहाँ से शब्दों की धारा बहकर श्रोताओं की आत्मा को स्पर्श करे। नियमपूर्वक कथा सुनने वालों के लिए सुयोग्य आसन की व्यवस्था करें, तथा अन्य लोगों के बैठने की भी, ताकि कोई भी इस रहस्यमयी सभा से वंचित न रहे। कथा बाँचने वाले विद्वान के प्रति कभी बुरी भावना न रखें, क्योंकि वह शिव का दूत है, और उसकी ओर बुरी नजर डालना स्वयं शिव को चुनौती देना है।


संसार में जन्म तथा गुणों के कारण बहुत से गुरु होते हैं, परंतु उन सबमें पुराणों का ज्ञाता ही परम गुरु माना जाता है—वह जो पुराणों के गुप्त रहस्यों को जानता हो। पुराणवेत्ता पवित्र, शांत, साधु, ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करने वाला और दयालु होना चाहिए। ऐसे गुणी मनुष्य को इस पुण्यमयी कथा को बाँचना चाहिए, क्योंकि उसके शब्दों में शिव का रहस्य छिपा होता है, जो सुनने वाले को मोहित कर लेता है। सूर्योदय से साढ़े तीन पहर तक इसे बाँचने का उपयुक्त समय है, जब सूरज की किरणें धरती को रहस्यमयी तरीके से जगाती हैं। मध्याह्नकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिए, ताकि लोग मल-मूत्र का त्याग कर सकें, और अपनी शुद्धता को बनाए रखें, क्योंकि अशुद्धता इस रहस्य की कुंजी को बंद कर देती है।


जिस दिन से कथा शुरू हो रही है, उससे एक दिन पहले व्रत ग्रहण करें—एक ऐसा व्रत जो आत्मा को रहस्य की ओर ले जाए। कथा के दिनों में प्रातःकाल का नित्यकर्म संक्षेप में कर लेना चाहिए, ताकि मन पूरी तरह शिव की ओर मुड़ सके। वक्ता के पास उसकी सहायता हेतु एक विद्वान व्यक्ति को बैठाना चाहिए, जो सब प्रकार के संशयों को दूर कर लोगों को समझाने में कुशल हो—वह जैसे कोई रहस्य का द्वारपाल हो, जो हर संदेह को दूर कर कथा की गहराई में प्रवेश दे। कथा में आने वाले विघ्नों को दूर करने के लिए सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं, और बिना उनके आशीर्वाद के कोई रहस्य खुलता नहीं। भगवान शिव व शिव पुराण की भक्तिभाव से पूजा करें, एक ऐसी पूजा जो दिल को छू ले, और रहस्य की परतें खोल दे। तत्पश्चात श्रोता तन-मन से शुद्ध होकर आदरपूर्वक शिव पुराण की कथा सुनें, जैसे कोई गुप्त खजाने की तलाश में हो।


जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकार के कर्मों से भटक रहे हों, काम आदि छः विकारों से युक्त हों—वे जैसे अंधेरे में भटकते यात्री—वे पुण्य के भागी नहीं हो सकते। उनकी आत्मा में वह रहस्य प्रवेश नहीं कर पाता, जो शिव प्रदान करते हैं। जो मनुष्य अपनी सभी चिंताओं को भूलकर कथा में मन लगाते हैं—जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रिया में खो जाता हो—उन शुद्ध बुद्धि मनुष्यों को उत्तम फल की प्राप्ति होती है। यह फल कोई साधारण नहीं, बल्कि एक ऐसा रहस्य जो जीवन को बदल देता है, मोक्ष की ओर ले जाता है।


और इस प्रकार, हे श्रोताओं, यह शिव पुराण की श्रवण विधि न केवल एक नियम है, बल्कि एक अनंत यात्रा, जहाँ हर शब्द में शिव का रहस्य छिपा है। जो इसे अपनाता है, वह संसार के दुखों से मुक्त होकर, शिव की शाश्वत शांति में विलीन हो जाता है। क्या यह रहस्य तुम्हारी आत्मा को नहीं छूता? सुनो, और महसूस करो—क्योंकि शिव का आह्वान कभी व्यर्थ नहीं जाता, और यह कथा तुम्हारे मन में हमेशा के लिए बस जाएगी, एक अमिट छाप छोड़कर।


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