शिव पुराण की अमर महिमा: प्रथम अध्याय का दिव्य संदेश
नमस्कार।
आज कलियुग में जब चारों तरफ अशांति, भटकाव और आसुरी वृत्तियाँ फैली हुई हैं, तब भी कोई एक ऐसी पुस्तक है जो हाथ में आ जाए तो सारा खेल बदल जाता है। वह पुस्तक है—शिव पुराण।
आज मैं आपको शिव पुराण के पहले ही अध्याय की उस अमृत-वाणी को सुनाने जा रहा हूँ जो स्वयं सूत जी ने नैनिषारण्य के ऋषियों के सामने कही थी। यह अध्याय कोई साधारण परिचय नहीं, यह शिव पुराण की महिमा का घोषणा-पत्र है। इसे पढ़ते-सुनते ही हृदय में एक अजीब-सी शांति उतरने लगती है, जैसे कोई बहुत प्राचीन और बहुत अपने स्वर में बुला रहा हो।
शौनक जी ने हाथ जोड़कर पूछा—
“हे महाज्ञानी सूत जी! आप समस्त शास्त्रों के तत्त्वज्ञ हैं। कृपा करके मुझे पुराणों का सार बतलाइए। ज्ञान कैसे बढ़ता है? वैराग्य कैसे आता है? भक्ति कैसे गहरी होती है? साधु पुरुष काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों को कैसे जीतते हैं?
इस कलियुग में तो प्रायः सभी जीव आसुरी स्वभाव के हो गए हैं। कोई सरल, पवित्र, मंगलकारी साधन बतलाइए जिससे बुद्धि शुद्ध हो जाए, हृदय निर्मल हो जाए और अंत में उस निर्मल हृदय वाले पुरुष को सदैव के लिए शिव-पद की प्राप्ति हो जाए।”
यह प्रश्न कोई साधारण प्रश्न नहीं था। यह कलियुग के हर उस साधक का प्रश्न था जो बाहर से थक चुका है और भीतर कहीं एक आखिरी उम्मीद बची हुई है। शौनक जी ने जैसे हम सबकी ओर से पूछ लिया था।
सूत जी मुस्कुराए। उनकी आँखों में अपार कृपा थी। उन्होंने कहा—
“शौनक जी! आप धन्य हैं। आप अत्यंत धन्य हैं। आपके हृदय में पुराण-कथा सुनने की जो लालसा जागी है, वही सबसे बड़ा सौभाग्य है।
इसलिए आज मैं आपको सबसे उत्तम, सबसे दिव्य, सबसे अमृत-तुल्य शास्त्र की कथा सुनाता हूँ—शिव पुराण।
यह वह शास्त्र है जो भक्ति को पूर्णता देता है, जो शिवजी को प्रसन्न करता है, जो सभी सिद्धांतों से परिपूर्ण है।
पूर्वकाल में स्वयं भगवान शिव ने इसका प्रवचन किया था। फिर सनत्कुमार मुनि ने गुरुदेव वेदव्यास जी को इसका उपदेश दिया। व्यास जी ने आदरपूर्वक इसे संकलित किया।
और कलियुग में मनुष्यों के उद्धार का यह सबसे बड़ा, सबसे सरल, सबसे अचूक साधन है।”
सूत जी ने फिर कहा—
“इस पृथ्वी लोक पर जितने भी मनुष्य हैं, उन्हें भगवान शिव के उस अनंत, अखंड, विश्व-रूप को समझना चाहिए। उस समझ के लिए सबसे श्रेष्ठ साधन है—शिव पुराण को पढ़ना और सुनना।
यह मनोवांछित फल देने वाला है। इसके श्रवण मात्र से मनुष्य निष्पाप हो जाता है। इस लोक में सभी सुख भोगकर अंत में शिवलोक प्राप्त करता है।”
शिव पुराण में कुल २४,००० श्लोक हैं और सात संहिताएँ—
- विदेश्वर संहिता
- रुद्र संहिता
- शतरुद्र संहिता
- कोटिरुद्र संहिता
- उमा संहिता
- कैलास संहिता
- वायवीय संहिता
सूत जी कहते हैं—यह पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान मोक्ष प्रदान करने वाला है। इसे पूर्ण भक्ति और संयम के साथ सुनना चाहिए। जो मनुष्य प्रेमपूर्वक नित्य शिव पुराण का पाठ करता है या सुनता है, वह निश्चय ही महान पुण्यात्मा है।
भगवान शिव उस विद्वान पर शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उसे अपना धाम दे देते हैं।
जो मनुष्य प्रतिदिन शिव पुराण का पूजन करता है, वह इस संसार में सभी भोग भोगकर भी अंत में शिव-पद प्राप्त करता है और सदा सुखी रहता है।
शिव पुराण में भगवान शिव का सर्वस्व समाया हुआ है। इसमें शिव का नाम, शिव का रूप, शिव की लीला, शिव की कृपा, शिव का ज्ञान, शिव की भक्ति—सब कुछ है।
इस लोक और परलोक दोनों में सुख चाहने वाले मनुष्य को इसका आदरपूर्वक सेवन करें।
यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष—चारों पुरुषार्थ देने वाला है। इसलिए इसे सदा प्रेमपूर्वक पढ़ना और सुनना चाहिए।
अब थोड़ा रुककर सोचिए।
कलियुग में कोई तप नहीं कर सकता, कोई बड़ा यज्ञ नहीं कर सकता, कोई लंबा अनुष्ठान नहीं कर सकता।
लेकिन एक काम हर कोई कर सकता है—शिव पुराण को प्रेम से सुनना या पढ़ना।
सूत जी ने इसे कलियुग का सबसे सरल और सबसे प्रभावशाली साधन कहा है।
आज भी लाखों घरों में शाम को शिव पुराण की कथा होती है और वहाँ बैठे-बैठे लोग रोने लगते हैं। क्यों? क्योंकि वहाँ शिव स्वयं उपस्थित हो जाते हैं।
मैंने स्वयं देखा है—जो लोग नियमित रूप से शिव पुराण सुनते हैं, उनके चेहरे पर एक अलग ही आभा रहती है। क्रोध कम हो जाता है, चिंता कम हो जाती है, नींद गहरी आती है, सपने भी पवित्र आने लगते हैं।
एक बार एक सज्जन ने बताया—उन्होंने सिर्फ सात दिन लगातार शिव पुराण सुना और आठवें दिन उन्हें लगा जैसे कोई भारी बोझ कंधों से उतर गया। वे बोले, “पहले मैं सोचता था मैं बहुत पापी हूँ। अब लगता है शिव जी ने मुझे गोद ले लिया है।”
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं। यह शिव पुराण की घोषित महिमा है।
आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम सोचते हैं कि समय ही नहीं है।
पर सच कहें—समय तो हम नेटफ्लिक्स को दे देते हैं, रील्स को दे देते हैं, बेकार की बहस को दे देते हैं।
बस एक घंटा अगर रोज शिव पुराण को दे दें, तो सारी जिंदगी बदल जाएगी।
सूत जी ने कहा है—“प्रेमपूर्वक नित्य बांचने वाला पुण्यात्मा है।”
प्रेमपूर्वक। यह शब्द बहुत गहरा है। जबरदस्ती नहीं, प्रेम से। जैसे कोई अपनी प्रेमिका की चिट्ठी बार-बार पढ़ता है, वैसे ही शिव पुराण को पढ़ो। शिव तुम्हारे प्रेमी हैं, तुम उनकी प्रेमिका। बस यह भाव रखो, फिर देखो चमत्कार।
कितने ही लोग गीता पढ़ते हैं, रामायण पढ़ते हैं—बहुत अच्छा है। पर शिव पुराण का जो रस है, वह कहीं और नहीं।
यहाँ शिव को इतना निकट पाओगे कि लगेगा वे सामने बैठे मुस्कुरा रहे हैं।
यहाँ शिव की कृपा इतनी प्रचंड है कि पाप का पहाड़ भी पिघल जाता है।
अंत में सूत जी का वह वाक्य फिर दोहराना चाहता हूँ—
“अतः सदा प्रेमपूर्वक इसे सुनना एवं पढ़ना चाहिए।”
बस इतना सा काम।
इतना सा काम, और बदले में शिव स्वयं।
अगर आप आज से ही शुरू करना चाहते हैं तो सबसे पहले प्रथम अध्याय पढ़िए—यही जो मैंने आपको सुना रहा हूँ।
इसे पढ़ते हुए महसूस करिए कि सूत जी आपको ही संबोधित कर रहे हैं।
शौनक जी के स्थान पर स्वयं को रखिए और सूत जी से पूछिए—
“हे महाराज! मुझे वह साधन बतलाइए जिससे मैं शिव को पा जाऊँ।”
और सूत जी आपको वही जवाब देंगे जो उन्होंने शौनक जी को दिया था—
“शिव पुराण।
बस शिव पुराण।
और कुछ नहीं चाहिए ही नहीं।”
शिव पुराण की जय।
महादेव की जय।
और आप सबकी शिव प्राप्ति की जय।
ॐ नमः शिवाय।
पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
शिव पुराण में कुल कितने श्लोक और संहिताएँ हैं?
शिव पुराण में कुल २४,००० श्लोक हैं और सात संहिताएँ हैं - विदेश्वर, रुद्र, शतरुद्र, कोटिरुद्र, उमा, कैलास और वायवीय संहिता।
कलियुग में शिव प्राप्ति का सबसे सरल साधन क्या है?
सूत जी के अनुसार कलियुग में शिव पुराण को प्रेमपूर्वक नित्य पढ़ना या सुनना ही सबसे सरल और अचूक साधन है।
शिव पुराण के श्रवण से क्या-क्या लाभ होते हैं?
श्रवण मात्र से पाप नष्ट होते हैं, मन शुद्ध होता है, सभी सुख मिलते हैं, क्रोध-चिंता दूर होती है और अंत में शिवलोक प्राप्ति होती है।
शिव पुराण की रचना किसने की?
स्वयं भगवान शिव ने इसका प्रवचन किया, सनत्कुमार मुनि ने व्यास जी को उपदेश दिया और वेदव्यास जी ने इसे संकलित किया।
क्या रोज एक घंटा शिव पुराण सुनना पर्याप्त है?
हाँ, सूत जी कहते हैं - प्रेमपूर्वक नित्य श्रवण करने वाला पुण्यात्मा है और शिव शीघ्र प्रसन्न होकर अपना धाम देते हैं।
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हर हर महादेव 🙏


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